पुस्तक समीक्षा ;


लेखमाला *शिक्षा राजभाषा* लेखक - डॉ. कुलभूषण ‌लाल मखीजा  

     

डॉ. कुलभूषण लाल मखीजा द्वारा लिखित लेख माला 'शिक्षा राजभाषा' चतुर्थ पुष्प के रूप में शिक्षक एवं शिक्षार्थी व पालकों की पथ प्रदर्शक व शिक्षा जगत को आलोकित करने वाली अनूठी पुस्तक है। पुस्तक की भाषा सरल एवं सहजता से ओतप्रोत है। 60 पृष्ठों एवं 16 शैक्षणिक निबंधों से सजी यह पुस्तक सांस्कृतिक राष्ट्रीय सामाजिक नैतिक एवं पारिवारिक मूल्य को बड़ी सरलता से समझने एवं विचार करने पर बाध्य कर देती है। पुस्तक की कीमत मात्र चालीस रुपये है।   

 

आज के बालक कल के सुयोग्य नागरिक बने अपने कर्तव्य को समझने तथा समाज को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की प्रेरणा इस पुस्तक से प्राप्त होती है। भावी पीढ़ी के प्रति पालकों के दायित्व शिक्षकों का सत्य आचरण, आत्मनिष्ठा एवं ज्ञान सिद्धता बालकों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने में अमूल्य भूमिका अदा करती है। बालक राष्ट्र की आत्मा एवं आत्मप्रकाश से विकसित करने की आवश्यकता का परिचय लेखक द्वारा दिया गया है।

 

बच्चे क्या चाहते हैं? लेख में लेखक द्वारा बाल मन को गहराई से टटोलने का प्रत्यय किया है। जहां माता-पिता रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त रहते हैं, वे बालकों में शिष्टाचार एवं अनुशासन का परिचय देने में शत-प्रतिशत सफल नहीं हो पाते। पालकों की डांट फटकार, तुलनात्मक, आलोचना, असमानता, बालकों में हीन भावना का रोपण करती है, और बालक कुंठित हो जाता है। वहीं बालकों की सराहना एवं प्रशंसा, बालकों में  आत्मविश्वास का जागरण करती है। यह बताकर लेखक ने पालकों को बालकों के प्रति नम्रता का भाव रखने के लिए सचेत किया है। लेखक शिक्षा को भेद दृष्टि रहित बनाने पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था भेद दृष्टि रहित होना अनिवार्य है। केवल एक-सी यूनिफॉर्म से समानता स्थापित नहीं हो सकती है अपितु बच्चों के शिक्षण में व्यावहारिक समानता का बीज रोपना आवश्यक है । "बच्चे ही राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं।" राष्ट्र निर्माता, राजनेता ,समाज नेता, रक्षक व्यवसाई एवं राष्ट्र का भविष्य बच्चे ही हैं, अतः बच्चों का लालन- पालन व शिक्षण लेखक ने व्यावहारिक होना बताया है। जो एक सजग लेख का प्रतीक है। लेखक ने बालकों को साहित्य को वयोनुसार तीन वर्गों में विभाजित किया है ।1) शिशु साहित्य, 2)बाल साहित्य 3) किशोर साहित्य। साहित्य बच्चों को नई दिशा एवं ज्ञान देते हैं । बाल साहित्य प्रतिभा की कसौटी है। बच्चों का मस्तिष्क जिज्ञासाओं और जानकारियों के लिए लालायित रहता है ।अक्षरज्ञान , गीत ,कविता कहानी, चुटकुले पहेलियां, प्रेरक जीवनी उनका ज्ञान वर्धन करती है। बाल साहित्य की कुछ आधारभूत विशेषताओं का भी उल्लेख पुस्तक में किया गया है। जो बच्चों को ज्ञान-रूपी ऑक्सीजन के समान है। परिवार विद्यालय और बच्चों में परिवार को बच्चों की पहली पाठशाला बताते हुए पालकों की जिम्मेदारी को बखूबी से निभाने के लिए प्रेरित किया गया है। विद्यालय का उचित चयन, पालक शिक्षक का व्यक्तिगत परिचय बालक को अनुशासन प्रिय एवं सुयोग्य नागरिक बनाने में अहम भूमिका अदा करती है। पालक शिक्षक का व्यक्तिगत परिचय व संपर्क होते रहने से बच्चों को शिक्षा में सुधार होता है‌। तथा बच्चे अधिक रुचि लेकर विद्या ग्रहण करते हैं। शिक्षण में संत संस्कार नामक लेख में लेखक द्वारा भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के सारभूत के तत्वों का उल्लेख किया गया है। जो सभी में भाई-चारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण, पर्यावरण सुरक्षा, सामाजिक अवरोध निर्मूलन जैसे मूल्यों को सिखाने के लिए प्रेरित करती है।

 

'सार्थक अध्ययन की प्रक्रिया' पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने स्वस्थता, चिन्त की एकाग्रता परस्पर प्रेम भाव, ज्ञानयुक्त मेल मिलाप एवं आचरण ज्ञान का स्पष्टीकरण बड़े मार्मिक ढंग से किया है। व्यक्तित्व निर्माण में लेखक ने बालकों को सक्त बनाने में पालकों एवं शिक्षकों की भूमिका स्पष्ट की गई है। शिक्षण में यथार्थ, ज्ञान में नई शिक्षा नीति, खुद करके सीखो, प्रयोग द्वारा ज्ञान प्राप्ति तथा बेसिक शिक्षण विधियों को बताते हुए जीवन के यथार्थ हेतु शिक्षा के होने पर विशेष बल दिया गया है। आज के बालक कल के चरित्र शील से राष्ट्र निर्माता है। बच्चे अनुकरण से सीखते हैं इसलिए बच्चों को उचित व योग्य अनुकरण मिलना चाहिए। शैक्षणिक गुणवत्ता के विकास में लेखक ने परिवार विद्यालय एवं शिक्षण की महत्वता स्पष्ट की है। जिसके लिए शिक्षक-पालक वर्ग का सामूहिक सम्मेलन आवश्यक है।

 

 मनुष्य के विकास में भाषा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। लेखक ने हिंदी का संक्षिप्त इतिहास हिंदी का महत्व समझाया है। हमारा राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय खेल एक ही है, उसी प्रकार हमारी राष्ट्रीय भाषा भी एक है। इसे बढाना, सवारना, प्रयोग करना यही हमारा दायित्व है। हिंदी राष्ट्रीय एकता में अमूल्य योगदान निभा रही है। जिसके लिए लेखक ने हर नागरिक का सहयोग आवश्यक बताया है। राजभाषा हिंदी का वर्तमान इतिहास और भविष्य राजभाषा हिंदी का वर्तमान, इतिहास और की व्यावहारिक भविष्य राजभाषा  हिंदी की संवैधानिक स्थिति राजभाषा की व्याहारिक एवं अनुवाद का यथार्थ हिंदी एवं प्रचार माध्यम जैसे लेख पुस्तक की आत्मा है। कुल मिलाकर लेखक ने राष्ट्रीय को नई दिशा देने के लिए बालक-पालक- शिक्षक एवं राजभाषा की वर्तमान स्थिति एवं राष्ट्रीय के नैतिकता को मजबूत बनाने के लिए लेखक द्वारा किया गया प्रयास पाठनीय, ज्ञानवर्धक, पथ प्रदर्शक एवं मील का पत्थर साबित होगा इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

 प्रत्येक  लेख के अंत में लेखक द्वारा दी गई सुविचारों की माला पुस्तक को बहुमूल्य बना देती है, जैसे- अभिभावकों की उदासीनता से शैक्षणिक वातावरण की गिरावट को सहयोग मिलता है। बच्चों का विश्वास जीतने के लिए उनकी समस्याओं को समझना जरूरी है, उनके साथ आत्मीय व मित्रता पूर्णा व्यवहार करना चाहिए। झूठ को झूठ की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है किंतु सत्य अजेय है।

 

अनुचित है या उचित है, यह समुझत नहीं कोय।

घर-घर जो बोलत फिरै, भाषा कहिए सोए।।

 

जैसे अमूल्य विचारों की मणियों द्वारा लेखक ने पुस्तक के लेखों की सार्थकता सिद्ध की है। पुस्तक का एक-एक शब्द लेखक की आत्मीयता की पहचान बनाने में सफल है। लेखक द्वारा पुस्तक में अपने अथक प्रयास से गागर में सागर भरने का महान कार्य संपन्न हुआ है जो बालक- पालक शिक्षक एवं ज्ञानार्जन करने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए पाठनीय हैं। पुस्तक का पूर्ण प्रारूप पर संपादक द्रय की बौद्धिक मानसिकता उनके मौलिक प्रयास एवं अथक परिश्रम का एक सफल व सटीक उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस सार्थक प्रयास के लिए लेखक डॉ. कुलभूषण लाल मखीजा जी बधाई के पात्र है। यह पुस्तक शिक्षा जगत को आलोकित करते हुए हिंदी शिक्षा साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान अवश्य बनाएगी ।

   


समीक्षक

रुम नं. 1 हिल निवास, टेंबीपाड़ा, गांवदेवी रोड

भाण्डुप (प.) मुम्बई 400078 

मो. 09869678842


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